Friday, November 4, 2011

कशमश.......



किस्मत की कशमकश से अब कुछ ऎसी बैचैनी होती है 
की सुनी हुई बात भी उन्सुनी सी लगती है 
इस बैचैनी का सबब किससे बयां करे यारों 
क्योकि खुल कर जीना भी अब खुदगर्जी लगता है 

पल दो पल का साथ नहीं था तेरा मेरा
उन लम्हों की कहानी तो खुद वक़्त बयां करता है
तेरे साथ कई जिंदगीया जी है मेने 
लेकिन बिन तेरे बे-सबब हो कर जीना अभी बाकी था....

थक चला हु अबे में  तुझे भूलने की कशमोकश से  ..
तेरा मासूम चेहरा है जो मिटता नहीं इन आँखों से...
मुझे भी वो तरकीब बता ऐ मेरे हमदर्द 
जिसने सब कुछ भुला दिया तुझे एक पल में..

शरद ----------

No comments:

Post a Comment