जान के भी तुम अनजाने से बने हो
अपने है तुम पर बेगाने से बने हो
जाना अंजना रिश्ता है सदियों से
बीच में तेरे मेरे जो मिटता नहीं
एक जहाँ में हमसे ही क्यों खफा हो
जब मुझमें तुम अनंत समाये हो
चाह कर भी ये चाहत मिटती नहीं
तन्हाई भरी जिन्दगी अब कटती नहीं
तेरा ख्याल ऐसा रमा है मुझमे
में ना जाग पाया ना सो पाया
जाने कैसे निकलू इस कशमोकश से
बताये कोई हमे होश या, है हम बेहोश से
अब तो जीता हु इस भरम में
क़ि भुला पाउँगा तुझे इस जनम में
जीने मरने से किसी ने कुछ ना खोया पाया
में तो जी जी के मर और मर मर के जी ना पाया